जीवन की असीम संभावनाओं को
एक मनगढंत परिधि में कैद कर जीना ,
भला यह भी कोई जीना है ।
क्या है जो मुझे रोकता है
इन सीमाओं को मिटाने से ?
इन सीमाओं में इतना सुकून क्यूँ है ?
वो कौन से विचार है
जो मेरी जीजिविषा को बांधे हैं ।
मेरी इन विचारो से क्या दोस्ती है ?
इन सवालों का ज़वाब ढूंढ़ना
क्या सचमुच ज़रूरी है ?
या इन व्यर्थ सवालों में ,
मैंने ढूंढ लिया है
ज़िन्दगी जीने का आसान तरीका ।
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